Add To collaction

सफर - मौत से मौत तक….(ep-17)

यमराज और नंदू अंकल पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, नंदू अंकल को नींद आयी हुई थी। तभी यमराज ने देखा कि नन्दू अपना रिक्शा लेकर समीर को लेने आ  रहा है तो यमराज ने तुरंत नंदू को जगा दिया।

आंखे मलते हुए उबासीयाँ लेते हुए नंदू अंकल उठा और खुद को रिक्शे में आता हुआ देखने लगा, रिक्शे वाले नंदू के चेहरे में भी खुशी झलक रही थी, शायद वो बहुत खुश था, उसके रिक्शे के पीछे एक सायकल थी, जो वो आज खरीदकर ले आया था अपने समीर के लिए। और अभी रास्ते मे आते आते ही खरीदा, समीर सायकिल चलाने का बेहद शौकीन भी था, और उसके पास सायकिल नही होते हुए भी उसने दोस्तो से ले लेकर सायकिल चलाना पहले से सीख रखा था।

अभी छुट्टी नही हुई थी, नंदू थोड़ा जल्दी आ गया था शायद, उसने अपनी कलाई में बंधी घड़ी की तरफ देखा तो अभी पंद्रह मिनट बाकी थे, नंदू जब बहुत ज्यादा एमरजेंसी हो तो तभी घड़ी में समय देखता था, उसे बार बार टाइम देखना पसंद नही था, क्योकि ये कलाई घड़ी उसे बार बार गौरी की याद दिलाती थी। अभी पंद्रह मिनट बाकी थे , नंदू करे भी क्या, घड़ी पर नजर फेरने के बाद वो एकटक होकर घड़ी को निहारता रहा और उसे याद आया वो दिन……

नंदू को ससुराल वालों ने एक छोटा सा अटैची गिफ्ट दिया था, उसमे एक जोड़े धोती कुर्ता और एक जोड़े चमड़े के महंगे वाले जूते और कलाई घड़ी रखी हुई थी।
शादी के दो तीन दिन बाद मेहमानों के जाने के बाद नंदू ने उसे खोला, धोती कुर्ता और जूते तो अभी काम नही आ सकते थे, लेकिन कलाई घड़ी बहुत सुंदर थी, नंदू ने फटाफट उसे अपने हाथ मे पहन लिया, और जूते निकालकर अलमारी के नीचे डाल दिये, और कुछ नए कपड़े उस अटैची में डालकर उसे बंद कर दिया। थोड़ी देर में गौरी कमरे में आई और बोली
"आप….आप यहाँ क्या कर रहे है….माँजी तो बोल रही थी उन्होंने आपको सामान लेने दुकान भेजा है" गौरी बोली।

"बस जाने ही लगा था, फिर ये घड़ी मिल गयी, तो पहन ली, लेकिन इसकी चाबी काम नही कर रही, मैं घुमा रहा हूँ तो सारी सुइयां एक साथ घूमने लग जा रही" नंदू ने कहा

गौरी ने नंदू का हाथ पकड़ा और ऊपर को उठाते हुए बोली- "लाइए मैं बताती हूँ, कैसे होगा"

नंदू के पास खड़ी गौरी ने नंदू  के घड़ी के बटन को घुमाकर उसमे आठ बजाते हुए कहा- "अभी मेरे ख्याल से आठ ही बजे होंगे"

"हाँ आठ सवा आठ जितने भी बजे है, मगर वो भागने वाली सुई भागे तब ना….ऐसे आठ तो कई दफा मैंने भी बजाए" नंदू बोला।

"ये देखिए और ध्यान देना अगली बार आप खुद करोगे….अभी ये बटन ऊपर हल्का सा ऊपर है, इसे खट्ट की आवाज के साथ अंदर को दबाना है, तब चालू होने लगेगी….लीजिये खुद दबाइये तब याद रहेगा आपको" गौरी बोली।

नंदू ने बटन के ऊपर उंगली रखते हुए कहा- "दबा में देता हूँ, लेकिन वो आवाज आप निकाल दो, मुझे नही आएगा"

"अरे मुंह से कोई आवाज नही निकालनी है, आप दबाओ आवाज खुद आएगी, बटन करेगा आवाज, हमने नही करना है" गौरी हंसते हुए बोली।

नंदू ने बटन दबाया और देखा कि बहगने वाली सुई भागने लगी थी।

"हो गया ना…." गौरी ने कहा।

"हाँ….लेकिन जब चाबी खत्म हो जाएगी तो चाबी कहाँ को भरना है" नंदू को लगा वो चाबी वाली घड़ी है।

"ये चाबी वाली नही है, दुकानदार ने कहा था, इसमे चाबी नही भरते, इसमे सेल डालना होता है, ये सेल वाली घड़ी है" गौरी बोली।

"आपको कैसे आया चलाना, जब रिक्शा चलाने वाले को नही आया तो" नंदू मजाक करते हुए बोला।

"मैंने दुकानदार भैया से ही पूछा था, और एक बार मे ही सब समझ आ गया था मुझे, आपको भी आ गया समझ या नही" गौरी बोली।

"मुझे समझने की क्या जरूरत, मेरे पास समझदार पत्नी है , सच कहूँ तो तुम्हारे समझाने का तरीका इतना प्यारा था कि मैं तुम्हे समझने की कोशीश करने लगा था, इस घड़ी का क्या इसे तो बाद में भी समझ लूँगा, ये तो मेरे हाथ मे ही रहेगी हमेशा" नंदू बोला।

"तो मैं कौन सा आपको छोड़ने वाली हूँ, जैसे ये घड़ी हमेशा आपके हाथ मे रहेगी, वैसे ही आपकी पत्नी भी हर हमेशा आपके साथ में रहेगी" गौरी ने कहा

"बाद में मुकर तो नही जाओगी ना…." नंदू बोला।

"मैं क्यो मुकरने लगी, लेकिन आप भी वादा करो, हमेशा इसी तरह  हमारा ख्याल रखोगे, हमेशा इसी तरह भरोसा और इज्जत करोगे" गौरी बोली।

"भरोसा, इज्जत और फिक्र इन तीनो को मिलाकर प्यार बनता है, और मैं हमेशा तुमसे प्यार करूँगा" नंदू ने थोड़ा शरमाते हुए कहा।

गौरी को लगा शायद कोई आ रहा है, उसने जल्दी से नंदू के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया और थोड़ा दूर खड़ी हो गयी।

कौशल्या आवाज देते हुए अंदर की तरफ आयी "बहु….नंदू समान लेकर आ गया क्या"

बहु बेटा कुछ जवाब देते इससे पहले कौशल्या अंदर आयी और नंदू को देखकर बोली- "अरे आ तो गया, समान कहां रखा, पहले वो पकड़ा देता मुझे"

नंदू हिचकिचाते हुए बोला- "वो….वो माँ मैं अभी गया ही नही, बस अभी जाकर ले आता हूँ" कहकर नंदू बाहर की तरफ़ जाने लगा"

"रुक…." कौशल्या ने आवाज दी।

नंदू पीछे मुड़ा तो कौशल्या ने कहा- "ये घड़ी दाएं हाथ मे क्यो पहनी है, इसे बाएं हाथ मे पहनना चाहिए"

"क्यो क्या होता है उससे" नंदू ने सवाल किया।

"वक्त खराब आता है, इसे दाएं हाथ मे पहन और जल्दी से जाकर समान लेकर आजा" कौशल्या ने कहा और बाहर चली गयी।

"इसे बाएं हाथ मे पहना दो प्लीज" नंदू ने मां के जाने के बाद दोबारा अपना हाथ गौरी को थमाते हुए कहा।

"इतना भी खुद नही कर सकते आप….मैं कमरे में ना होती तो कौन पहनाता" गौरी दाएं हाथ से घड़ी उतारते  हुए बोली।

गौरी नंदू को घड़ी बदल रही थी और नंदू गौरी को ही देख रहा था, नंदू के पैर जमीन में नही थे, मन ही मन इतरा रहा था। और सोच रहा था। अच्छा हुआ चम्पा ने उस दिन मना कर दिया। वरना मुझे गौरी नही मिलती, शायद भगवान सच मे जोड़ी ऊपर से बनाकर भेजता है।

तभी नंदू को एक आवाज सुनाई दी….

"पापा…मैं कहाँ बैठूंगा, पीछे तो किसी की साइकिल है" समीर ने कहा।

समीर को लगा कि पापा किसी बच्चे की साइकिल उसके घर तक छोड़ने जा रहे है, जैसे कभी किसी के भारी भरकम बैग्स, कभी किसी का राशन, उसी तरह किसी की साइकिल होगी।

नंदू की आवाज सुनकर अचानक ही नंदू के यादों से झिलमिलाते हुए गौरी का चेहरा गायब हो गया और उसकी जगह जो नया चेहरा नजर आया वो था समीर का


दो पल रुका खवाबों का कारवां
और फिर चल दिए तुम कहाँ हम कहाँ
दो पल की थी ये दिलों की दास्ताँ
और फिर चल दिए तुम कहाँ हम कहाँ
और फिर चल दिए तुम कहाँ हम कहाँ


नंदू थोड़ी देर तक ध्यान से समीर को देखता रहा, उसके चेहरे में एक सवाल था, जिसे उसने रिपीट करते हुए कहा
- "पापा मैं बैठूंगा कहा, रिक्शे में जगह नही है"

नंदू ने हंसते हुए सायकिल को नीचे  उतारते हुए कहा- "आज तुम मेरे साथ रिक्शे में नही आओगे, आज ही क्या बल्कि आज के बाद भी कभी नही…."

नंदू की बातों से समीर के लिए यह समझना आसान था की पापा उसके लिए सायकिल ले आये लेकिन यकीन करना बहुत मुश्किल था, इसलिए समीर ने सवाल किया
"लेकिन क्यो?"

"क्योकि आज से तुम इस सायकिल से आओगे और जाओगे" नंदू बोला।

इतना सुनते ही समीर खुशी से उछल पड़ा, और पापा से लिपटते हुए बोला- "यीईईये….थेँक्स पापा…."

नंदू भी अपने बेटे समीर के पीठ को सहलाते हुए बोला- "अब तो नही करेगा ना किसी चीज की जिद…."

"नही पापा, अब नही करूँगा कोई जिद…." ये दृश्य सिर्फ यमराज और नंदू अंकल ही नही देख रहे थे, जबकि शुक्ला जी और राणा जी भी देख रहे थे। जो छूट्टी के बाद वापस जा रहे थे।

अब समीर ने अपनी साइकिल उठाई और सायकिल से दूर जा रहे नवीन को आवाज मारते हुए कहा- "रुक जाए रे! मैं भी आ रहा हूँ"

लेकिन इतनी दूर आवाज नही पहुंची इसलिए समीर तेज सायकिल चलाते हुए उसका पीछा करते हुए निकल पड़ा।

"संभाल के चलाना…." नंदू ने आवाज दी और अपने रिक्शे में बैठकर खुद भी घर की तरफ निकलने लगा, क्योकि घर की चाबी उसके ही पास थी।

"सुनो……" पीछे से आवाज आई।

नंदू ने आवाज की तरफ मुड़कर देखा पिछे दो अध्यापक खड़े थे, एक तो शुक्ला जी थे, हेडमास्टर……. और दूसरे राणा जी, जो कि उस वक्त दफ्तर में मौजूद थे। नंदू नही जानता था की राणा जी ही हिंदी के अध्यापक है जिन्होंने समीर को ऐसी बात कही थी।

"जी कहिए मास्टर जी" नंदू ने कहा।

दोनो एक साथ नंदू के पास आये,

"एक बात कहनी है आपसे…." शुक्ला जी ने कहा।

"एक नही चार कहिए, लेकिन जल्दी कहिए, क्योकि समीर सायकिल लेकर चला गया है, चाबी मेरे पास है, उसे ज्यादा इन्तजार करना पड़ेगा" नंदू बोला।

"चलो कोई बात नही, इतनी जरूरी भी नही, आप चलिए अभी, बातें तो होती रहेंगी" शुक्ला जी ने कहा और वहाँ से चले गए।

नंदू को लगा उसने जल्दी पूछ लो कहकर टोक दिया सलिये नाराज होकर पूछा ही नही होगा।

राणा जी अभी भी वहीं खड़े थे, और नंदू को देख रहे थे।

नंदू ने राणा जी से पूछा- "इन्हें क्या हुआ….ऐसे बात बोलनी है बोलकर ,बिना बोले क्यो चले गए"

"उनका तो मुझे नही पता लेकिन मैं जरूर एक बात कहना चाहूंगा…. आपमें मुझे वो काबिलियत नजर आ रही है जो मेरी बात को गलत साबित कर दे" राणा जी ने कहा।

"अरे मास्टर जी, आपकी बाते सर आंखों पर, मैं क्यो आपकी बात को गलत साबित करूँगा…." नंदू ने कहा।
नंदू ये नही जानता था कि ये वो ही अध्यापक है जिसने उनके बेटे समीर से कहा था कि "तुम्हारे पापा रिक्शा चलाते है तो तुम भी वही करोगे"

"पहले तो आपसे दिल से माफी चाहता हूँ, क्योकि आपके बेटे को मैंने ही कहा था कि तुम्हारे पापा रिक्शा चलाते है तो तुम भी वही करोगे, मैंने ये बात जानबूझकर उसके मनोबल गिराने के लिए नही कही थी, जबकि उसके अंदर एक जोश पैदा करना था…. इस उम्र में बच्चे तब तक कुछ नही करते है जब तक उनके दिल मे किसी की कोई बात चुभ ना जाये,  और ये बात आज नही जब वो कक्षा छहवीं में आया था तब से बोली थी….तब उसका ध्यान पढ़ाई लिखाई में कम और दोस्ती यारी में ज्यादा जाने लगा था….और उसकी दोस्ती उन लोगो से है जो बड़े होकर कुछ ना भी करे तो उनके पापा चाचा या मेरी तरह कोई रिश्तेदार उन्हें कहीं ना कहीं नौकरी में लगा ही लेंगे, और इसी आड़ में वो बच्चे ना कुछ पढ़ते है ना पढ़ने देते है। वो अब तक ठीक से पढ़ाई कर रहा है तो सिर्फ इसलिए कि उसके दिल मे मेरे लिए गुस्सा है, वो मुझे गलत साबित करना चाहता है। मैंने उसे ये बात हर बार समझाई है कि बाकी के पापा लोग अच्छी अच्छी नौकरी करते है लेकिन तुम्हारे पापा रिक्शा चलाते है, तुम पढ़ने लिखने में ध्यान दो, उनका नाम रोशन करो, लेकिन प्यार की भाषा बच्चे कम समझते है आजकल के, इसलिये परसो मैंने उसे चिढ़ाने के लिए कह दिया कि रिक्शा चलाने वाले का बेटा रिक्शा ही चलाएगा…….शायद मुझे ऐसा नही बोलना चाहिए था।" राणा जी ने कहा।

नंदू बस खामोशी से सुनता जा रहा था। राणा जी में सकारात्मक ऊर्जा थी। और किसी बच्चे के भविष्य को खराब करने की कोई मंशा नही थी। जबकि राणा जी ने वो सारी बात बताई जो समीर ने नही बताई थी, अक्सर बच्चे सिर्फ उतना ही बताएंगे जितने में उनकी कोई गलती ना हो,  आजतक प्यार से कहा तो समीर एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दे रहा था। लेकिन जब समीर नही बदला तो राणा जी ने खुद को बदल लिया। और वैसे भी सिर्फ राणा जी ही गलत होते तो समीर प्रिंसिपल सर वाले रूम में राणा जी के आने के बाद भी चुप नही रहता, वो पापा को जरूर बोलता की हिंदी वाले सर आ गए है।

"आप ही बताओ, मैं क्या गलत करता हूँ, समीर अगर यारी दोस्ती में पड़कर ये भूल जाएगा कि उसके पापा गरीब है और किस तरह से मेहनत करके शुल्क भरते है, और उन अमीरजादों को देखकर फिजूलखर्ची में उतर आएगा तो आपका क्या होगा" राणा जी ने कहा।

नंदू को खुद की गलती का एहसास हो गया था, एक शिक्षक कभी अपने पढ़ाये बच्चो का बुरा नही चाहता, जिस तरह पिता को खुशी होती है कि उसका बच्चा उससे ज्यादा तरक्की करे, वैसा ही एक शिक्षक भी चाहता है।

नंदू उसकी बात सुनते हुए भावुक से होने लगा था। उसकी समझ नही आया क्या कहूँ,
"बस गुरुजी अब और शर्मिंदा मत कीजिये….मुझे मांगनी चाहिए आपसे माफी….मैं ही समीर की बात सुनकर ग़ुस्से मे हंगामा करने लगा था…." नंदू बोला।

"अरे नही…माफी की कोई जरूरत नही, आप बस समीर का ख्याल रखना" राणा जी बोले।
"है भगवान! समीर घर पहुंच गया होगा, मुझे अभी जाना होगा, आपको भी छोड़ना है तो कहिए" नंदू जल्दबाजी में रिक्शे में बैठते हुए बोला

"नही! नही….मैंने तो बस पास ही जाना है….आप चलो…" कहते हुए राणा जी भी चल पड़े।

और नंदू भी रिक्शा लेकर घर की तरफ आ गया।

यमराज और नंदू ये नजारा देखकर समझ नही पाए कुछ।
यमराज ने आश्चर्य से नंदू की तरफ देखा और कहा- "ये क्या था?, मतलब राणा ने तो बात ही बदल दी….और आपने उसपर यकीन भी कर लिया, आप जानते हो कि वो नकली डिग्री वाला अध्यापक है"

"यकीन डिग्री देखकर नही होता, उसका कहना अपनी जगह सही है….और वैसे भी तब मुझे नही पता था कि वो नकली डिग्री लिए घूम रहा था….वो तो आज पता चला हमको" नंदू बोला।

"अब क्या करे…." यमराज बोला।

"करना क्या है आगे बढ़ते है" नंदू बोला।

"ये ठीक कहा आपने, आगे बढ़ते है, चलो बताओ कितना आगे बढ़ना है, कहानी कहाँ से शुरू करु, बुढ़ापे में ले आऊँ" यमराज बोला।

"अरे कहानी को आगे नही बढ़ाना है, हम आगे बढ़ते है" कहते हुए नंदू यमराज को आगे को धकेलते धकेलते खुद भी आगे बढ़ने लगा।

"बस बस बस……और कितना आगे ले जाओगे, लेफ्ट ले लूँ आगे दीवार है।" यमराज हंसते हुए बोला और रुक गया।

"आप भी ना अंकल बहुत मस्तीखोर होते जा रहे है….मेरी किसी बात को सीरियस नही लेते" यमराज बोला।

"हँहँहँ….चलो तुम्हारी बात सीरियस लेते है, जवानी की तरफ बढ़ते है, क्योकि बचपन मे तो माँ बाब बच्चे को जितना प्यार करते है, बच्चे वापस भी लौटाते है, इजहार करना आसान होता है, और जता भी लेते है….लेकिन फिर धीरे धीरे प्यार होने के बाद भी जताना कम हो जाता है, और एक गलतफहमी जन्म लेने लगती है" नंदू बोला।

"तो चलो बताओ कहाँ चले" यमराज ने सवाल किया।

"अम्म्म्म…….चलो ऑटो सर्विस शोरूम में चलते है" नंदू ने कहा।

"ये कहाँ है, और वहाँ क्या करेंगे" यमराज ने कहा।

"ये तब की बात है जब रिक्शे का चलन कम होने लगा था, ऑटो चलने लगी थी, और लोजी रिक्शे से अच्छा ऑटो में जाना पसंद करने लगे थे" नंदू बोला।

"अच्छा फिरु आपने ऑटो खरीद ली क्या? " यमराज ने नंदू से पूछा।

"गया तो खरीदने ही था लेकिन………चलो जाकर देखते है, सुनने में मजा नही आएगा" नंदू ने कहा।

दोनो नंदू के बताए पते पर पहुंच गए।

कहानी जारी है


   15
3 Comments

🤫

28-Sep-2021 06:45 PM

बेहतरीन कहानी...साइकिल पाकर जो खुशी मिली समीर को उससे कहीं ज्यादा खुशी नंदू को मिली होगी...😊

Reply

Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:51 PM

Amezing

Reply

इंटरेस्टिंग.....!!

Reply